भारत के विकास में बैंकों की भूमिका हिंदी निबंध
"देश के विकास में बैंक देते अहम योगदान,
अर्थव्यवस्था को मजबूत करते बनाते देश को विकसित और महान"
परिचय-
किसी भी देश के विकास में उस देश के बैंकों की अहम भूमिका होती है।हमारा देश भारत भी आज तेजी के साथ जिस उन्नति के पथ पर अग्रसर है। उस पथ का आधार देश में फैला बैंको का जाल ही है। बैंकों की अधिकता के कारण ही हम उन्नति के शिखर की ओर बढ़ रहे हैं। बैंक हमारे देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाते हैं।
बैंक किसे कहते हैं-
बैंक वह वित्तीय संस्था है जो जनता से धनराशि जमा करने तथा जनता को ऋण देने का काम करता है। लोग अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने के हेतु इन संस्थाओं में जमा करते और आवश्यकतानुसार समय समय पर निकालते रहते हैं। बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को व्यापारियों एवं व्यवसायियों को ऋण देकर ब्याज कमाते हैं। आर्थिक आयोजन के वर्तमान युग में कृषि, उद्योग एवं व्यापार के विकास के लिए बैंक एवं बैंकिंग व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है।
बैंको के कार्य-
धनराशि जमा रखने तथा ऋण प्रदान करने के अतिरिक्त बैंक अन्य काम भी करते हैं जैसे, सुरक्षा के लिए लोगों से उनके आभूषणादि बहुमूल्य वस्तुएँ जमा रखना, अपने ग्राहकों के लिए उनके चेकों का संग्रहण करना, व्यापारिक बिलों की कटौती करना, एजेंसी का काम करना, गुप्त रीति से ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की जानकारी लेना देना। अत: बैंक केवल मुद्रा का लेन देन ही नहीं करते वरन् साख का व्यवहार भी करते हैं। इसीलिए बैंक को साख का सृजनकर्ता भी कहा जाता है। बैंक देश की बिखरी संपत्ति को केंद्रित करके देश में उत्पादन के कार्यों में लगाते हैं जिससे पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है और उत्पादन की प्रगति में सहायता मिलती है।
भारत के विकास में बैंकों की भूमिका-
हमारे देश में बैंकों की स्थापना देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने हेतु की गयी थी बैंक हमारे देश की अर्थव्यवस्था की सबल धुरी हैं। देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में बैंकों की भूमिका अहम है। शुरुआत में बैंक जनता के धन का संरक्षक था परन्तु आज बैंक सामाजिक आकांक्षाओं का भी संरक्षक है। आज बैंक आम आदमी की सेवा तक कर रहें हैं।
बैंक सामाजिक संस्था है जो आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु अन्य क्षेत्रों में एवं समाज कल्याण में भी अहम भूमिका निभा रही है। समाज की समस्याएँ जैसे-गरीबी दूर करना, जीवन-स्तर सुधारना तथा मानव मात्र को नवीन गौरव प्रदान करते हुए उपभोक्ताओं की समुचित सेवा करना। आधुनिक युग में राष्ट्र की अर्थव्यवस्था बैंकों द्वारा नियन्त्रित होती है।
राष्ट्र एवं समाज के साथ बैंकों का घनिष्ठ सम्बन्ध है। बैंक ग्राहक सेवा के माध्यम से ही समाज सेवा करते हैं। मानव का आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विकास बैंकों से जुड़ा है। बैंकों के समक्ष अनेक महत्त्वपूर्ण दायित्व हैं उनमें से एक है हमारे उपेक्षाग्रस्त जनजाति समाज का उद्धार एवं उत्थान करना। उपेक्षित वर्ग को बैंक आत्मनिर्भर बनाने में योग देने में सक्षम है।
कृषि कार्यों के लिए ऋण देकर किसानों के जीवन-स्तर सुधार हेतु भी बैंक प्रयत्नशील हैं। अन्धे, बधिर तथा विकलांगों के संस्थानों को आर्थिक सहायता देकर बैंक उन्हें रोजगार के अवसर सुलभ कराते हैं। नगरों के विकास में बैंक बढ़-चढ़कर अपना योगदान कर रहे हैं। चिकित्सा शिविर, औषधि वितरण तथा बच्चों को अध्ययन सामग्री आदि की सुविधाएँ जुटाने में बैंक भरपूर सहयोग प्रदान कर रहे हैं। बैंकों की तरफ से कुटीर उद्योगों हेतु जरूरी सुविधाएँ भी प्रदान की जा रही है। इस प्रकार जीवन को विकासोन्मख बनाने में बैंक अपना योगदान कर समाज एवं राष्ट्र की सेवा करते हुए जीवन के आधार स्तम्भ बन गये हैं। ग्राहकों के माध्यम से बैंक समूचे राष्ट्र को बचत का पाठ पढ़ा रहे हैं।
उपसंहार-
इस प्रकार बैंक आर्थिक तन्त्र के आधार के साथ बाकी क्षेत्रों में भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। शहरों से लेकर गावों तक बैंकों के विस्तार से देश की सम्पन्नता का विस्तार हो रहा है। बैंकिंग संस्थाएँ अपनी क्रियाशीलता एवं सक्रियता से आर्थिक क्रियाओं की वित्त व्यवस्था करती है और परिणामस्वरूप चहुंमुखी विकास को गति मिलती है। बैंकों के ईमानदार अधिकारी ही बैंक की शान होते हैं और अच्छे बैंक ही देश की शान होते हैं। भविष्य में बैंक प्रसार और अधिक होगा तथा देश भी भौतिक रूप से सुसम्पन्न होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
"बैंकों का होगा जब और अधिक प्रसार, बनेंगे ये भारत के चहुंमुखी विकास के आधार।"
भारत में बैंकों का विकास
"देश की अर्थव्यवस्था में देते अहम योगदान,
बैंकों के विकास से बनता देश विकसित और महान।"
परिचय-
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों की बड़ी अहम भूमिका होती है। बैंक उस वित्तीय संस्था को कहते हैं जो जनता से धनराशि जमा करने तथा जनता को ऋण देने का काम करता है। लोग अपनी अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने के हेतु इन संस्थाओं में जमा करते और आवश्यकतानुसार समय समय पर निकालते रहते हैं। बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को व्यापारियों एवं व्यवसायियों को ऋण देकर ब्याज कमाते हैं। आर्थिक आयोजन के वर्तमान युग में कृषि, उद्योग एवं व्यापार के विकास के लिए बैंक एवं बैंकिंग व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है।
भारत में बैंकों की स्थापना-
भारत में बैंकों की शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई। भारत का पहला बैंक 1770 में स्थापित किया गया था जिसका नाम बैंक ऑफ हिंदुस्तान था। 19वीं शताब्दी के आरंभ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने 3 बैंकों की शुरुआत की - बैंक ऑफ बंगाल 1806 में, बैंक ऑफ बॉम्बे 1840 में और बैंक ऑफ मद्रास 1843 में। लेकिन बाद में इन तीनों बैंको का विलय एक नये बैंक 'इंपीरियल बैंक' में कर दिया गया जिसे सन 1955 में 'भारतीय स्टेट बैंक' में विलय कर दिया गया।
भारत में बैंकों का विकास-
19वीं सदी से अब तक भारत मे बैंकों का विकास निरन्तर हो रहा है। तीनों बैंकों के विलय के पश्चात कुछ अन्य बैंक भी स्थापित किए गए थे जैसे इलाहाबाद बैंक 1865 पंजाब नेशनल बैंक 1894 केंद्रीय बैंक का राष्ट्रीयकरण भी किया गया था। नरसिम्हा समिति की सिफारिश के साथ, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन 2 अक्टूबर 1975 को किया गया था। सन 1991 के बाद बैंकों के विकास में तेजी आई। वर्ष 1991 में बैंकों की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए उदार आर्थिक नीतियों का गठन किया गया।
यह विस्तार, समेकन और वेतन वृद्धि का चरण था।उस दौरान RBI ने 10 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिए, जिनमें आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी, डीसीबी आदि शामिल हैं। केंद्रीय बैंक का राष्ट्रीयकरण भी किया गया था। नरसिम्हा समिति की सिफारिश के साथ, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन 2 अक्टूबर 1975 को किया गया था।
सन 1991 के बाद बैंकों के विकास में तेजी आई। वर्ष 1991 में बैंकों की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए उदार आर्थिक नीतियों का गठन किया गया। यह विस्तार, समेकन और वेतन वृद्धि का चरण था।उस दौरान RBI ने 10 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिए, जिनमें आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी, डीसीबी आदि शामिल हैं।
इलाहाबाद बैंक भारत का पहला निजी बैंक था।भारतीय रिजर्व बैंक सन 1935 में स्थापित किया गया था। फिर पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ़ इंडिया, केनरा बैंक और इंडियन बैंक स्थापित हुए। प्रारम्भ में बैंकों की शाखायें और उनका कारोबार वाणिज्यिक केन्द्रों तक ही सीमित होता था। स्वतन्त्रता से पूर्व देश के केन्द्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ही सक्रिय था। जबकि सबसे प्रमुख बैंक इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया था|स्वतन्त्रता के बाद रिजर्व बैंक को केन्द्रीय बैंक के रूप में बरकरार रखा गया।
उसे 'बैंकों का बैंक' भी घोषित किया गया। सभी प्रकार की मौद्रिक नीतियों को तय करने और उसे अन्य बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा लागू कराने का दायित्व भी उसे सौंपा गया। इस कार्य में भारतीय रिजर्व बैंक की नियंत्रण तथा नियमन शक्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण स्वतन्त्रता के उपरान्त सन् 1949 में किया गया था। धीरे धीरे करके बाकी बैंकों को भी राष्ट्रीयकृत किया जाने लगा। भारत में बैंकिग क्षेत्र में समय-समय पर सुधार किए जाते रहे हैं। धीरे धीरे भारत में बैंकों का महत्व और बढ़ा तथा इन बैंकों की शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में भी खोली गई। सन् 1991 में इन बैंकों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई।
इसके लिए भारत सरकार ने अगस्त 1991 में श्री एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की तथा बाद में सन् 1998 में भी बैंकिग प्रणाली सुधार कमेटी इन्हीं की अध्यक्षता में नियुक्त की गई। वित्तीय प्रणाली की समीक्षा के लिए एम. नरसिंहम ने 1991 में बहुत सी सिफारिशें की। जिनसे भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सुधार लाया जा सके।
परिणामस्वरूप भारत में बैंकिंग बहुत सुविधाजनक और परेशानी मुक्त है। कोई भी व्यक्ति आसानी से लेनदेन की प्रक्रिया कर सकता हैं। बैंकों द्वारा भारत में दी जाने वाली आम सेवाएँ बैंक खाते, ऋण खाते, धन हस्तांतरण, क्रेडिट और डेबिट कार्ड, लॉकर्स, अनिवासी भारतीयों के लिए बैंकिंग सेवा आदि हैं। वर्तमान में भारत में विभिन्न प्रकार के वाणिज्यिक बैंक जैसे कि केन्द्रीय बैंक-रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत की केंन्द्रीय बैंक है जो कि भारत सरकार के अधीन है।
इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक - भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी बैंक जिन्हें 'स्टेट बैंक समूह' कहा जाता है। राष्ट्रीयकृत बैंक-क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, भारत में सक्रिय विदेशी बैंक, अनुसूचित सहकारी बैंक, गैर अनुसूचित बैंक, सहकारी क्षेत्र - जिसके अंतर्गत बहुत प्रकार बैंक आ जाते हैं आदि कार्यरत हैं।
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